40th Anniversary and Re-Inauguration Ceremony of Hindu-Jain Temple in Pittsburgh, USA

Aug 12 2024

40th Anniversary and Re-Inauguration Ceremony of Hindu-Jain Temple in Pittsburgh, USA

The Hindu Jain Temple of Monroeville, Pittsburgh, today celebrated its historic 40th anniversary with a grand event that reaffirms its role as a monumental symbol of religious unity and cultural heritage in America. Established in 1984 by His Holiness Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji – Muniji, President of Parmarth Niketan, Rishikesh, India, this temple is not only among the earliest Hindu temples in the United States but also stands unparalleled worldwide as the first temple where Hindus and Jains worship together. It is further distinguished as the first temple globally where both sects of Jainism—Shwetambar and Digambar—unite in shared devotion and puja.

The Hindu-Jain temple was started in 1980, and after four years of tireless planning and construction, the official inauguration took place in 1984. It sits on ten acres of beautiful lush wooded land in Monroeville, Pennsylvania, a suburb of the bustling city of Pittsburgh.

Today’s celebration was marked by a profound sense of history and reverence as the entire Greater Pittsburgh community gathered to honor the temple’s enduring legacy. The event commenced with the auspicious Shikhar Puja, a sacred ritual in which Pujya Swamiji and Pujya Sadhvi Bhagawati Saraswatiji, elevated to the height of the five domes by cranes, offered consecrated water on the temple’s shikhars. They were joined by the temple’s executive committee, board of trustees, and the longstanding pillars of support. This ceremony symbolized the temple’s renewal and its continued dedication to its spiritual mission.

Following the Shikhar Puja, a sacred havan/yagna ceremony was conducted, led by Pujya Swamiji, Sadhviji, and the temple priests, invoking blessings for peace, prosperity, and spiritual upliftment for all, as well as unity and harmony across the world. The ceremony was followed by inspirational speeches from Pujya Swamiji and Sadhvi Bhagawatiji, who recounted the temple’s storied past and highlighted its critical role as a bastion of faith, unity, and cultural preservation in the diaspora.

Pujya Swamiji delivered a stirring and poetic message, capturing the essence of the temple’s mission: “This temple is not merely a place of worship; it is a historic beacon of unity and oneness,” He proclaimed. “We are called to thrive together, hand in hand, heart in heart, and to extend the power of our united community to the world.”

Reflecting on the tragic violence against Hindus in Bangladesh, Pujya Swamiji urged the gathered community to offer their prayers for their suffering sisters and brothers. “In a world fractured by division, the messages of unity that emanate from this sacred space are more critically needed than ever. Let us be the light that shines through the darkness.”

In his closing remarks, Pujya Swamiji appealed to the successful professionals within the community to remember their roots and give back to their motherland, Bharat. “Your karma bhumi, your land of action, is here in America. But never forget your matri bhumi—Bharat, your motherland. You owe it to your village, your town, your school, your college—the very foundation that has enabled your success today. Use your resources to uplift your village, to build schools, hospitals, and colleges. Support the institutions that shaped you, and in doing so, give the same opportunities to the youth of today.”

His words resonated deeply, calling upon the community to embrace their responsibility as stewards of both their adopted land and their ancestral home, ensuring that the legacy of unity, compassion, and giving continues to flourish.

Sadhvi Bhagawatiji recounted the compelling story of the temple’s founding during a time when Indian immigrants were not only few in number but also gravely misunderstood and severely discriminated against. It was an era marked by the rise of hostile “dot-buster” groups in areas where Indian communities were beginning to settle. At that time, the nearest Indian grocery store was hundreds of miles away, and the closest Hindu temple was two states distant. Yet, despite these challenges, through unwavering dedication and perseverance, and with the blessings and inspiration of Pujya Swamiji, the community succeeded in erecting this magnificent, five-domed masterpiece on a serene hillside in Monroeville.

“You today are the inheritors,” Sadhvi Bhagawatiji emphasized. “You have inherited this great gift. But a mandir should not become a museum. It is a ‘maadhyam,’ an instrument, a tool, a channel —not a museum. It’s a ‘maadhyam’ to get more deeply connected with the Divine, and you must use it as such!” She underscored the critical importance of this connection, especially in today’s world, where rising rates of loneliness, depression, and mental health challenges are prevalent. Numerous studies have shown the significant benefits of religion in maintaining both mental and physical well-being.

The Hindu Jain Temple’s 40th anniversary and re-inauguration serve as a powerful reminder of the enduring strength of faith and the critical role spiritual centers play in nurturing community bonds. This historic temple continues to inspire not only the Hindu and Jain communities but also all who seek to witness the profound unity of diverse spiritual traditions in an increasingly interconnected world.

Today’s event marks a new chapter in the temple’s illustrious journey, as it continues to stand as a testament to the power of unity, faith, and shared purpose.


मोनरोविले, पिट्सबर्ग, अमेरिका, 12 अगस्त, 2024। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में हिंदू-जैन मंदिर, पिट्सबर्ग, अमेरिका की 40वीं वर्षगांठ और पुनः उद्घाटन का दिव्य व भव्य आयोजन किया गया।

यह समारोह धार्मिक एकता की एक उत्कृष्ट मिसाल है। हिन्दू-जैन मंदिर के माध्यम से अमेरिका में सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक एकता की उत्कृष्ट नींव की स्थापना स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने लगभग 45 वर्ष पूर्व की थी, जो वर्तमान समय में भी साम्प्रदायिक एकता की उत्कृष्ट भूमिका निभा रहा है।

1984 में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी द्वारा स्थापित, यह मंदिर न केवल अमेरिका के प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक है, बल्कि यह विश्व में पहला मंदिर भी है जहाँ हिंदू और जैन समुदाय के अनुयायी साथ-साथ अपनी-अपनी पूजन पद्धतियाँ करते हैं। यह जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदायों को भी एक साथ लाता हैं और दोनों सम्प्रदायों के लिये अपनी आस्था व पूजा का दिव्य स्थल है। 10 एकड़ में फैले इस मन्दिर के तीनों ओर नदियों का निर्मल प्रवाह प्रवाहित हो रहा है।

मोनरोविले की शान्त पहाड़ियों पर दक्षिण की शैली में निर्मित यह मन्दिर विश्व को साम्प्रदायिक एकता का संदेश दे रहा है। स्वामी जी इस मन्दिर को पश्चिम का प्रयाग कहते हैं, यहां पर कुम्भ का आयोजन तो नहीं होता परन्तु पूरे विश्व से श्रद्धालु यहां आकर एकता, समरसता, सद्भाव और अहिंसा के साक्षात दर्शन करते हैं। युद्धों के इस दौर में यह मन्दिर शान्ति व एकता के स्मारक के रूप में विश्व को विभाजन नहीं संगठन, हिंसा नहीं अहिंसा, नस्लवाद नहीं मानवता का संदेश दे रहा है।

हिन्दू-जैन मन्दिर की नींव 1980 में रखी गयी थी तथा इसका आधिकारिक उद्घाटन 1984 में हुआ था तब से लेकर आज तक यह मन्दिर साम्प्रदायिक एकता का उत्कृष्ट उदाहरण है और पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि एक ही पवित्र स्थल पर बैठकर भी अपनी-अपनी पूजा पद्धतियों पर परम्पराओं को बड़ी ही दिव्यता के साथ किया जा सकता है। अपनी पूजन पद्धतियों के साथ दूसरे समुदायों की भावनाओं का सम्मान कैसे किया जाता है, यह मन्दिर पूरे विश्व को संदेश दे रहा है।

हिंदू-जैन मंदिर की ऐतिहासिक वर्षगांठ के दो दिवसीय उत्सव की शुरुआत ‘शिखर पूजन’ से हुई, जिसमें स्वामी जी और साध्वी जी ने मंदिर के शिखरों का पवित्र जल से अभिषेक किया। तत्पश्चात सभी ने यज्ञ में आहुतियाँ समर्पित कर विश्व शांति, समृद्धि, आध्यात्मिक उत्थान और सद्भाव हेतु मिलकर प्रार्थना की। हिन्दू-जैन मंदिर की कार्यकारी समिति, न्यासी मंडल और श्रद्धालुओं ने भी शिखर पूजन में सहभाग किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दू-जैन मंदिर न केवल पूजा का एक पवित्र स्थान है बल्कि यह एकता का एक ऐतिहासिक प्रकाशस्तंभ भी है। हमें एक साथ मिलकर, हाथ में हाथ डालकर, दिल से दिल मिलाकर अपनी सामुदायिक एकता की शक्ति को दुनिया तक पहुँचाना होगा।

बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा में हताहत हुये लोगों के प्रति अपनी संवेदनायें व्यक्त करते हुये वहां पर शीघ्र स्थिरता व शान्ति की प्रार्थना करते हुये कहा कि आइए हम इस अंधकार के दौर में प्रकाश व दिशा प्रदान करने वाली रोशनी बनें।”

स्वामी जी ने विदेश की धरती पर रहने वाले प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुये कहा कि अपनी जड़ों, मूल, मूल्यों, संस्कारों व परम्पराओं को याद रखें। यह समय अपनी मातृभूमि ‘भारत’ को कुछ वापस करने का हैं। आपकी कर्मभूमि, अमेरिका सहित कोई भी राष्ट्र हो सकता है परन्तु अपनी मातृभूमि-भारत को कभी न भूलें। आप अपने गाँव, अपने शहर, अपने स्कूल, अपने कॉलेज के ऋणी हैं। भारत ने ही आपको नींव प्रदान की है जिससे आप सफलता की इबारत लिख रहे हैं और सक्षम  हैं। आप अपने समय को अपने गांवों में उत्थान के लिये नहीं लगा सकते परन्तु अपने संसाधनों का उपयोग कर अपने गाँव के उत्थान हेतु, स्कूलों, अस्पतालों और कॉलेजों का निर्माण कर सकते हैं। ऐसा करके आप उन संस्थानों का समर्थन करें जिन्होंने आपको आकार प्रदान किया है।

स्वामी जी ने कहा कि आज अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस भी हैं आप कुछ ऐसा करें कि भारत की वर्तमान युवा पीढ़ी को भी शिक्षा व रोजगार के समुचित अवसर प्राप्त हो सके। आप अपनी जन्मभूमि, गांव व समुदायों में चिकित्सा के केन्द्र, स्वच्छ जल की उपलब्धता, स्वच्छता, शिक्षा जैसी पहलों को शुरू करने के लिये गोद ले कर अपनी जन्मभूमि, अपने पैतृक गांव व घर को संरक्षित कर अपने राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण कर सकते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि हिन्दू-जैन मन्दिर आपकी आपसी एकता व करुणा की विरासत का केन्द्र है। इस गौरव व एकता की भावना को अपने परिवारों में बनायेेे रखना आप सभी की जिम्मेदारी है।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में मंदिर के गौरवशाली अतीत का उल्लेख करते हुये कहा कि प्रवासी भारतीय समुदाय में आस्था, एकता, सांस्कृतिक विरासत और साम्प्रदायिक एकता के दिव्य प्रतीक के रूप में यह मन्दिर सभी को अपनी जड़ों, मूल्यों, संस्कारों व संस्कृति से जोड़ने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

इस अवसर पर साध्वी जी ने हिन्दू-जैन मंदिर की स्थापना और उसके पीछे के पूज्य स्वामी जी के संघर्ष के विषय में जानकारी सभी के साथ साझा करते हुये कहा कि आज से 45 वर्ष पूर्व मन्दिर निर्माण के लिये अनेक चुनौतियाँ थी इसके बावजूद स्वामी जी के अटूट समर्पण और दृढ़ता पूर्ण निर्णय से मोनरोविले में इस शांत पहाड़ी पर इस शानदार, पांच गुंबद वाली उत्कृष्ट कृति को हम सब एक भव्य व दिव्य केन्द्र के रूप में देख रहे हैं।

साध्वी जी ने कहा कि इस दिव्य मन्दिर के आप सभी उत्तराधिकारी हैं। आपको इस महान कृति का उपहार विरासत में मिला है परन्तु इस मंदिर को आप संग्रहालय मत बनने देना, यह तो ईश्वर से गहराई से जुड़ने व आप सभी की आपसी एकता का एक माध्यम है और आपको यही संदेश प्रसारित करना है।

उन्होंने कहा कि आज दुनिया में, जहाँ अकेलेपन, अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य आदि चुनौतियाँ बढ़ रही हैं, ऐसे में आस्था व एकता का यह दिव्य केन्द्र आपको अकेलेपन, अवसाद व मानसिक तनाव से शान्ति की ओर लेकर जाने का माध्यम बनेगा।

स्वामी जी, साध्वी जी, हिन्दू-जैन मंदिर की कार्यकारी समिति, न्यासी मंडल और श्रद्धालुओं ने बांग्लादेश में शान्ति व स्थिरता की प्रार्थना की।

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